विविध धर्म गुरु >> साईश्री के अद्भुत देवदूत साईश्री के अद्भुत देवदूतसुशील भारती
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प्रस्तुत है साईश्री के अद्भुत देवदूत...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
श्रद्धालु भक्तों को मेरे दो शब्द
मेरे अपने प्रिय साई भक्तों,
मधुर साई राम !
डायमंड पॉकेट बुक्स देहली के माध्यम से ‘साई चिन्तन’ के पश्चात्, मैं अपने वचनानुसार अपनी कृति साईश्री के अद्भुत देवदूत को एक पुस्तक के रूप में लेकर, आपके समक्ष पुन: प्रस्तुत हूँ। श्रीसाई बाबा संस्थान शिरडी की अधिकृत नियतकालिक पत्रिका श्री साई लीला के माध्यम से, वे सभी साई भक्त जो इस पत्रिका के सदस्य हैं मेरी इस कृति का पूर्ण आनन्द पहले ही ले चुके हैं ! इस सन्दर्भ में मुझे उनके ढेर सारे पत्र प्राप्त हुये हैं और उन सभी पाठकों के अनुरोध पर, अब मुझे अपनी इस कृति को एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने हेतु, बाध्य होना पड़ा है !
वास्तव में साईश्री की सम्पूर्ण जीवनलीला, उनके बहुमूल्य उपदेशों वचनों एवं संदेशों को पूर्ण रूप से शब्दों में पिरोना अत्यंत ही दुर्लभ है ! मैंने अभी तक अपनी प्रकाशित सभी कृतियों के माध्यम से, साईश्री के गुण, प्रभाव, मर्म और उनके अलौकिक जीवन से संबंधित सभी प्रमुख घटनाओं को प्रस्तुत करने में, जो अथक परिश्रम किया है-उसमें मेरे साई ने, मुझे प्रत्येक पग पर अपने ज्ञान और विवेक का एक सबल सहारा दिया है !
मुझे इस बात का अत्यन्त ही आत्मिक सुख और संतोष है कि मेरी अब तक की प्रकाशित सभी कृतियों को साईं भक्तों ने हृदय से सराहा है और वे सब उनके परायण द्वारा मुमुक्षु सन्मार्ग की ओर अग्रसर होने के लिये प्रेरित हो सके हैं ! इस दिशा में उनके प्यारे-प्यारे पत्रों ने, मुझे भी एक सबल प्रेरणा प्रदान की है और इसके लिए मैं उन सभी साई भक्तों का हृदय से आभारी हूं, जो मुझे निरन्तर अपने प्यारे-प्यारे पत्र लिखते रहते हैं !
साईश्री के अद्भुत देवदूत से पूर्व, मैं सभी साई भक्तों के समक्ष अपनी निम्न कृतियां प्रस्तुत कर चुका हूं और साईश्री की असीम कृपा और उनके शुभ आशीष से, इस सभी कृतियों के चतुर्थ, पंचम् एवं षष्टम् संशोधिक संस्करण अब तक प्रकाशित हो चुके हैं :-
1. साई दर्शन
2. साई उपासना
3. साई सुख चालीसा
4. साई कृपा के पावन क्षण
5. साई संदेश
6. साई धाम
7. साई महिमा
8. बच्चों के साई (प्रथम भाग)
9. साई गीतमाला
10. साई चिन्तन
इसके अतिरिक्त तीन सौ पृष्ठों का साईसरिता शीर्षक के अन्तर्गत साईश्री के विषय में एक मूलग्रन्थ, जिसमें उनके जन्म से महासमाधि तक की सम्पूर्ण जीवनी, उनके अलौकिक चमत्कार, अवर्चनीय लीलायें और उनके अमूल्य उपदेश व संदेश संग्रहित हैं, शिरडी साई संस्थान के पास प्रकाशनार्थ विचाराधीन है ! संस्थान के अधिकारियों ने मेरी वो कृति, देश के कुछ प्रमुख विद्वानों के पास, उनकी राय और समालोचना हेतु भेजी हुई है ! ऐसी आशा है कि डायमंड पॉकेट बुक्स के माध्यम से, मैं साई सरिता शीघ्र ही प्रस्तुत करने में, समर्थ हो सकूँगा !
मैं शिरडी साई बाबा संस्थान के विद्यमान अध्यक्ष माननीय श्री द.म. सुकथनकर जी एवं संस्थान के विद्यमान कार्यकारी सम्पादक श्री विद्याधर ताठे जी का हृदय से आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे संस्थान से जोड़ने हेतु, अपना एक वांछित और प्रशंसनीय सहयोग प्रदान किया और इस क्षेत्र में आगे बढ़ने हेतु, मुझे एक आत्मीय प्रेरणा प्रदान की है ! भगवान श्री कृष्ण ने श्री मद्भगवद्गीता में श्री अर्जुन से कहा था –
मधुर साई राम !
डायमंड पॉकेट बुक्स देहली के माध्यम से ‘साई चिन्तन’ के पश्चात्, मैं अपने वचनानुसार अपनी कृति साईश्री के अद्भुत देवदूत को एक पुस्तक के रूप में लेकर, आपके समक्ष पुन: प्रस्तुत हूँ। श्रीसाई बाबा संस्थान शिरडी की अधिकृत नियतकालिक पत्रिका श्री साई लीला के माध्यम से, वे सभी साई भक्त जो इस पत्रिका के सदस्य हैं मेरी इस कृति का पूर्ण आनन्द पहले ही ले चुके हैं ! इस सन्दर्भ में मुझे उनके ढेर सारे पत्र प्राप्त हुये हैं और उन सभी पाठकों के अनुरोध पर, अब मुझे अपनी इस कृति को एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने हेतु, बाध्य होना पड़ा है !
वास्तव में साईश्री की सम्पूर्ण जीवनलीला, उनके बहुमूल्य उपदेशों वचनों एवं संदेशों को पूर्ण रूप से शब्दों में पिरोना अत्यंत ही दुर्लभ है ! मैंने अभी तक अपनी प्रकाशित सभी कृतियों के माध्यम से, साईश्री के गुण, प्रभाव, मर्म और उनके अलौकिक जीवन से संबंधित सभी प्रमुख घटनाओं को प्रस्तुत करने में, जो अथक परिश्रम किया है-उसमें मेरे साई ने, मुझे प्रत्येक पग पर अपने ज्ञान और विवेक का एक सबल सहारा दिया है !
मुझे इस बात का अत्यन्त ही आत्मिक सुख और संतोष है कि मेरी अब तक की प्रकाशित सभी कृतियों को साईं भक्तों ने हृदय से सराहा है और वे सब उनके परायण द्वारा मुमुक्षु सन्मार्ग की ओर अग्रसर होने के लिये प्रेरित हो सके हैं ! इस दिशा में उनके प्यारे-प्यारे पत्रों ने, मुझे भी एक सबल प्रेरणा प्रदान की है और इसके लिए मैं उन सभी साई भक्तों का हृदय से आभारी हूं, जो मुझे निरन्तर अपने प्यारे-प्यारे पत्र लिखते रहते हैं !
साईश्री के अद्भुत देवदूत से पूर्व, मैं सभी साई भक्तों के समक्ष अपनी निम्न कृतियां प्रस्तुत कर चुका हूं और साईश्री की असीम कृपा और उनके शुभ आशीष से, इस सभी कृतियों के चतुर्थ, पंचम् एवं षष्टम् संशोधिक संस्करण अब तक प्रकाशित हो चुके हैं :-
1. साई दर्शन
2. साई उपासना
3. साई सुख चालीसा
4. साई कृपा के पावन क्षण
5. साई संदेश
6. साई धाम
7. साई महिमा
8. बच्चों के साई (प्रथम भाग)
9. साई गीतमाला
10. साई चिन्तन
इसके अतिरिक्त तीन सौ पृष्ठों का साईसरिता शीर्षक के अन्तर्गत साईश्री के विषय में एक मूलग्रन्थ, जिसमें उनके जन्म से महासमाधि तक की सम्पूर्ण जीवनी, उनके अलौकिक चमत्कार, अवर्चनीय लीलायें और उनके अमूल्य उपदेश व संदेश संग्रहित हैं, शिरडी साई संस्थान के पास प्रकाशनार्थ विचाराधीन है ! संस्थान के अधिकारियों ने मेरी वो कृति, देश के कुछ प्रमुख विद्वानों के पास, उनकी राय और समालोचना हेतु भेजी हुई है ! ऐसी आशा है कि डायमंड पॉकेट बुक्स के माध्यम से, मैं साई सरिता शीघ्र ही प्रस्तुत करने में, समर्थ हो सकूँगा !
मैं शिरडी साई बाबा संस्थान के विद्यमान अध्यक्ष माननीय श्री द.म. सुकथनकर जी एवं संस्थान के विद्यमान कार्यकारी सम्पादक श्री विद्याधर ताठे जी का हृदय से आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे संस्थान से जोड़ने हेतु, अपना एक वांछित और प्रशंसनीय सहयोग प्रदान किया और इस क्षेत्र में आगे बढ़ने हेतु, मुझे एक आत्मीय प्रेरणा प्रदान की है ! भगवान श्री कृष्ण ने श्री मद्भगवद्गीता में श्री अर्जुन से कहा था –
अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भकानामीश्वरोऽपि सन् !
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय संभावाम्यात्ममायया।।6।।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।7।।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुकृताम्।
धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे-युगे।।8।।
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय संभावाम्यात्ममायया।।6।।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।7।।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुकृताम्।
धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे-युगे।।8।।
(गीता 4-पृ. 6 से 8)
‘‘हे अर्जुन ! मेरा जन्म प्राकृत मनुष्यों के सदृश
नहीं हुआ
है ! मैं अविनाशी स्वरूप होने पर भी, अपनी प्रकृति को अधीन करके, सदा
योगमाया से प्रगट होता हूँ। जब इस धरती पर धर्म की हानि और अधर्म की
वृद्धि होती है, तो मैं अपने रूप को रचता हूँ और मैं इस पृथ्वी पर मानव
योनि में अवतार स्वरूप प्रगट होता हूँ, जिससे साधु और संत पुरुषों का
उद्धार हो सके, और धर्म स्थापन करने के लिये, दूषित कर्म या पाप करने
वालों का मैं नाश कर सकूँ !’’
अत: जब किसी भी युग में, भगवान विष्णु इस पृथ्वी लोक पर, जन कल्याण हेतु मानव योनि में, अपना अवतार लेते हैं, तो वह स्वर्गलोक से ऐसी अनेक पुण्य आत्माओं को भी अपने साथ इस मानव योनि में लाते हैं, जो सदा उनकी प्रणाली में सहायक सिद्ध होती हैं !
इसी समान भगवान विष्णु ने इस कलियुग में, शिरड़ी के साईबाबा के स्वरूप में, जब अपना कलकी अवतार धारण किया था, तो वह भी अपने साथ इस धरती पर, स्वर्ग से अनेक देवदूत और पुण्य आत्माओं को मानव योनि में लेकर आये थे और उनके द्वारा उन्होंने अपनी कार्य प्रणाली को प्रभावी बनाया था। उनमें से कुछ निम्न प्रमुख देवदूतों और पुण्य आत्माओं के नाम, मैं अपनी इस कृति में सम्मिलित कर रहा हूँ :-
(1) श्री उपासिनी महाराज
(2) श्री दासगणु महाराज
(3) श्री म्हालसापति जी
(4) श्री नारायण गोविन्द चांदोरकर
(5) बायजा माँ
(6) श्री तात्या कोते
(7) श्रीमती राधाबाई देशमुख
(8) श्री माधवराव देशपांडे
(9) श्रीमती लक्ष्मीबाई
(10) श्री अब्दुल बाबा
(11) श्री सीताराम दीक्षित
(12) श्री जी.एस. खापर्डे
(13) श्री अन्ना साहेब दाभोलकर
(14) श्री सी.जी. नारके
(15) श्री एम.बी. रेगे
(16) श्री आर.बी. पुरन्दरे
(17) संती देवीदास
(18) श्रीमंत बूटी साहेब।
अत: मैंने अपनी इस पुस्तक के माध्यम से सर्वप्रथम श्री दासगणु महाराज; मां एवं तात्या कोते जी के जीवन चरित्रों के दिव्य दर्शन पर, निज शोध के आधार पर, केवल उन मूल दृष्टांतों और परिदृश्यों पर, कुछ ऐसे प्रमुख प्रसंगों सहित प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है, जो केवल भगवान श्री साईनाथ से संबंधित है।
मैं शिरडी के उन सभी प्रमुख पुस्तक विक्रेताओं का जिनके नाम इस पुस्तक के पृष्ठ 2 पर अंकित हैं, हृदय से आभारी हूँ कि उन्होंने शिरडी में अपना पूर्ण सहयोग देकर, मुझे इस क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया है ! और सभी हिन्दी भाषी साई भक्तों को लाभान्वित किया है !
अन्त में मैं डॉयमंड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि. नई दिल्ली के संचालक श्री नरेन्द्र कुमार का भी हृदय से आभारी हूँ कि उन्होंने मेरी इस अद्भुत कृति के प्रकाशन में, अपना पूर्ण नि:स्वार्थ सहयोग प्रदान किया है ! श्री नरेन्द्र कुमार जी की स्पष्टवादिता ने मुझे अत्यधिक प्रभावित किया है और भविष्य में मेरी सभी आगामी रचनायें, अब केवल ‘डॉयमंड पॉकेट बुक्स’ से ही प्रकाशित होंगी। मेरी सभी साईं भक्तों से सविनय प्रार्थना है कि वह मेरी सभी पुस्तकों एवं कृतियों के विषय में, अपने निष्पक्ष विचार एवं सुझाव मुझे अवश्य लिखें !
अब मैं अपनी शुभकामनाओं सहित, आपसे इस आशा में विदा ले रहा हूँ कि ‘साई सरिता’ को लेकर, आपके शीघ्र प्रस्तुत होने का प्रयास करूँगा !
अत: जब किसी भी युग में, भगवान विष्णु इस पृथ्वी लोक पर, जन कल्याण हेतु मानव योनि में, अपना अवतार लेते हैं, तो वह स्वर्गलोक से ऐसी अनेक पुण्य आत्माओं को भी अपने साथ इस मानव योनि में लाते हैं, जो सदा उनकी प्रणाली में सहायक सिद्ध होती हैं !
इसी समान भगवान विष्णु ने इस कलियुग में, शिरड़ी के साईबाबा के स्वरूप में, जब अपना कलकी अवतार धारण किया था, तो वह भी अपने साथ इस धरती पर, स्वर्ग से अनेक देवदूत और पुण्य आत्माओं को मानव योनि में लेकर आये थे और उनके द्वारा उन्होंने अपनी कार्य प्रणाली को प्रभावी बनाया था। उनमें से कुछ निम्न प्रमुख देवदूतों और पुण्य आत्माओं के नाम, मैं अपनी इस कृति में सम्मिलित कर रहा हूँ :-
(1) श्री उपासिनी महाराज
(2) श्री दासगणु महाराज
(3) श्री म्हालसापति जी
(4) श्री नारायण गोविन्द चांदोरकर
(5) बायजा माँ
(6) श्री तात्या कोते
(7) श्रीमती राधाबाई देशमुख
(8) श्री माधवराव देशपांडे
(9) श्रीमती लक्ष्मीबाई
(10) श्री अब्दुल बाबा
(11) श्री सीताराम दीक्षित
(12) श्री जी.एस. खापर्डे
(13) श्री अन्ना साहेब दाभोलकर
(14) श्री सी.जी. नारके
(15) श्री एम.बी. रेगे
(16) श्री आर.बी. पुरन्दरे
(17) संती देवीदास
(18) श्रीमंत बूटी साहेब।
अत: मैंने अपनी इस पुस्तक के माध्यम से सर्वप्रथम श्री दासगणु महाराज; मां एवं तात्या कोते जी के जीवन चरित्रों के दिव्य दर्शन पर, निज शोध के आधार पर, केवल उन मूल दृष्टांतों और परिदृश्यों पर, कुछ ऐसे प्रमुख प्रसंगों सहित प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है, जो केवल भगवान श्री साईनाथ से संबंधित है।
मैं शिरडी के उन सभी प्रमुख पुस्तक विक्रेताओं का जिनके नाम इस पुस्तक के पृष्ठ 2 पर अंकित हैं, हृदय से आभारी हूँ कि उन्होंने शिरडी में अपना पूर्ण सहयोग देकर, मुझे इस क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया है ! और सभी हिन्दी भाषी साई भक्तों को लाभान्वित किया है !
अन्त में मैं डॉयमंड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि. नई दिल्ली के संचालक श्री नरेन्द्र कुमार का भी हृदय से आभारी हूँ कि उन्होंने मेरी इस अद्भुत कृति के प्रकाशन में, अपना पूर्ण नि:स्वार्थ सहयोग प्रदान किया है ! श्री नरेन्द्र कुमार जी की स्पष्टवादिता ने मुझे अत्यधिक प्रभावित किया है और भविष्य में मेरी सभी आगामी रचनायें, अब केवल ‘डॉयमंड पॉकेट बुक्स’ से ही प्रकाशित होंगी। मेरी सभी साईं भक्तों से सविनय प्रार्थना है कि वह मेरी सभी पुस्तकों एवं कृतियों के विषय में, अपने निष्पक्ष विचार एवं सुझाव मुझे अवश्य लिखें !
अब मैं अपनी शुभकामनाओं सहित, आपसे इस आशा में विदा ले रहा हूँ कि ‘साई सरिता’ को लेकर, आपके शीघ्र प्रस्तुत होने का प्रयास करूँगा !
12, अशोर रोड, सागर (केंट)
सागर (म.प्र.) 470001
सागर (म.प्र.) 470001
आपका स्नेही
सुशील भारती
नोट-इसके पश्चात् मैं अपनी किसी अन्य नवीन पुस्तक में श्री माधवराव देशपांडे (शामा), श्रीमती लक्ष्मी बाई, श्री अब्दुल बाबा, श्री सीताराम दीक्षित एवं श्रीमंत बूटी साहेब के जीवन का दिव्य दर्शन प्रस्तुत करने का हर सम्भव प्रयास करूंगा।
नोट-इसके पश्चात् मैं अपनी किसी अन्य नवीन पुस्तक में श्री माधवराव देशपांडे (शामा), श्रीमती लक्ष्मी बाई, श्री अब्दुल बाबा, श्री सीताराम दीक्षित एवं श्रीमंत बूटी साहेब के जीवन का दिव्य दर्शन प्रस्तुत करने का हर सम्भव प्रयास करूंगा।
स्वामी प्रज्ञानंद जी का शुभ आशीष
साई दर्श केन मर्मज्ञ एवं प्रखर साई भक्त श्री सुशील भारती जी की लेखिनी
से शिरडी साई संस्थान की अधिकृत पत्रिका, श्री साईलील में साईधाम एवं
साईश्री के अद्भुत देवदूत के अन्तर्गत प्रकाशित धारावाहिकों के पश्चात्,
यह नाम साईं भक्तों में, अब किसी के परिचय का मोहताज नहीं है ! धनीभूत साई
निष्ठा के धनी श्री भारती जी ने प्रात: आराध्य पीड़ित मानवता के मसीहा,
सच्चिदानंद सद्गुरु साईनाथ महाराज के जीवनवृत्त को, जिस सहज शैली में
अभिव्यक्त किया है, उनका वह प्रयास अभिनंदनीय है ! बाबा श्री के हिन्दी
भाषाभाषी के लिये, श्री शिवराम ठाकुर और श्री भूपतिसिंह ठाकुर के पश्चात्,
श्री भारती जी का अवदान चिरकाल तक स्मरण किया जायेगा !
साईश्री के आध्यात्मिक दर्शन पर आपकी लेखिनी द्वारा, जो प्रामाणिक सामग्री अब तक प्रस्तुत की गई है, वह अन्यत्र किसी भी अन्य पुस्तक के साथ सुलभ नहीं है ! औपन्यासिक शैली में उनके द्वारा लिखा गया साईश्री का हिन्दी साहित्य, अद्योपान्त पढ़ने के लिए, प्रत्येक साई भक्त को विवश कर देता है ! यह उनकी अपनी लेखिनी और शैली की विशेषता है ! श्री भारती जी द्वारा रचित और साई प्रकाशन सागर एवं डॉयमंड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि. दिल्ली द्वारा उनकी सभी पुस्तकें अत्यन्त ही पठनीय है और उनकी सभी रचनायें, प्रत्येक साई भक्त को एक मुमुक्षु की भांति सन्मार्ग की ओर प्रेरित करती हैं !
साईश्री के आध्यात्मिक दर्शन पर आपकी लेखिनी द्वारा, जो प्रामाणिक सामग्री अब तक प्रस्तुत की गई है, वह अन्यत्र किसी भी अन्य पुस्तक के साथ सुलभ नहीं है ! औपन्यासिक शैली में उनके द्वारा लिखा गया साईश्री का हिन्दी साहित्य, अद्योपान्त पढ़ने के लिए, प्रत्येक साई भक्त को विवश कर देता है ! यह उनकी अपनी लेखिनी और शैली की विशेषता है ! श्री भारती जी द्वारा रचित और साई प्रकाशन सागर एवं डॉयमंड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि. दिल्ली द्वारा उनकी सभी पुस्तकें अत्यन्त ही पठनीय है और उनकी सभी रचनायें, प्रत्येक साई भक्त को एक मुमुक्षु की भांति सन्मार्ग की ओर प्रेरित करती हैं !
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